Poem Review: मधुशाला by Harivansh Rai Bachchan(1935)

मधुशाला by Harivansh Rai Bachchan My Rating: 4 of 5 Stars   यह १३५ बेशकीमती रुबाइयाँ मात्र किसी मधुशाला के लिए एक क़सीदा नहीं है अपितु गाती हुई रूपक है ज़िन्दगी की , वह ज़िन्दगी जो उजाले और अंधेरे से, न्यायनीति और भेदभाव से ,आलिंगन और अभाव से परिपूर्ण है | अपनी कलम को नीली … More Poem Review: मधुशाला by Harivansh Rai Bachchan(1935)